बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

अंजान सफर


(सीन 1)
अचानक एक कार रुकी....
बड़ी ज़ोर सी आवाज़ आई....रोहन.....बीप बीप
बालकनी से रोहन ने झांक के देखा एक अजब सी रंगत थी उसके चेहरे पर....आज वीकेंड तो नहीं था पर.....
उँगलियों मे चाभी सुदर्शन जैसे घुमाते....बड़ी तेज़ी से उतरता गया सीढ़ियों से.....
ठंड के मारे गाड़ी भी दुबकी पड़ी थी....सेल्फ स्टार्ट अपनी अजीब से धुन से लोगों की सुबह की नींद उड़ा रहा था....!!!
कार की काले शीशे परत हटा एक हट्टा-कट्टा नवजवान....गले मे चमकता चेन लपेटे हाथो मे ब्रेसलेट की हथकड़ी लगाए....बोल पड़ा....!!!
"रोहन क्यूँ नहीं बेंच देता ये खटारा कबसे ढो रहा इसे....."
रोहन ने बात को अनदेखा कर तेज़ी से किक करने लगा....
डर्र...डर्रर....डर्रडर्रडर्रर्रर्रर्रर्रर्र....स्टार्ट हो गयी.....
अजय से रहा ना गया...."चल स्टार्ट तो हो गयी तेरी रोहनप्यारी"
अब जल्दी चल वरना देर हो जाएंगे....7 तो यही बज गए....!!!
रोहन ने जवाब दिया...."अजय चल मैं आ रहा हूँ...."
अजय से रहा नहीं....कार बगल लगाई....और बोला...."अबे मुझे क्या विलन बनाने का ठेका दे रखा है....चल तू मैं भी चलूँगा...."
रोहन ने बड़ी मशक्कत की पर....अजय नहीं माना.....!!!
और चल दिये दोनों एक लंबे सफर पर......



(सीन 2)
अब दोनों ही उड़ रहे थे खुले विचारो मे....ना किसी का रोक-टोक ना ही कोई अवरोध.....
गाड़ी की रफ्तार भी उनके बालों की हरकत से निकाली जा सकती थी.....
कभी रोहन गाना शुरू करता तो अजय उसे आगे बढ़ाता तो कभी अजय मुखड़ा गाता तो रोहन उसे खत्म करता....बड़ी अच्छी ताल-मेल थी....वो कहते है जैसे होती जय-वीरू टाइप....!!!
अब दोनों पहुँच चुके थे....अपने अड्डे पर.....!!!
शायद रोहन को इस जगह आने का पता ना था....
तभी भवें उठाए बोला...."ये जगह......sssss....तो जानी पहचानी सी लगती...."
"हाँ हाँ"....तपाक से अजय ने सर हिलाकर उसे संतुष्ट किया....!!
रोहन ने चारो-ओर नज़ारे घुमाई और कुछ पल के लिए तो सहम सा गया....हर रील उसे ब्लैक-एंड-व्हाइट जैसे स्लो मोशन मे चलती नज़र आ रही थी....जैसे वो कभी आए है यहाँ....कितना लगाव है इस जगह से उसे....!!!
बड़ी देर तक रोहन को कुछ ना बोलते देख अजय ने उसके गालो को सहलाते हुए बोला...."याद है बे कभी हम यही आके अपने सपनों को बुनते थे....पर....अबबबबब...."
(अजय की आवाज़ मे अब वो दम ना था)
रोहन बड़ी सहजता से माहौल गमगीन होने से बचाते हुए बोला...."अबे गाड़ी वाड़ी....चैन-सेन बड़े आदमी बन गया तू....अब तो...."
अजय ने नज़रे चुराते बोला...."अपना क्या है बे सब बाप का है....उनका ही पहनो....उनका ही खाओ....अपने सपनों पर तो दीमक लग गए....ज़रा देख उस पेड़ को आज भी वो हमारी दोस्ती पहचानता, कैसे चुप-चाप हम दोनों को देख रहा...."
अजय ने बात पलटने की भर-पूर कोशिश की....
पर रोहन मानने वाला ना था....उसकी जिज्ञासा एवरेस्ट चढ़ती जा रही थी...."क्या हुआ बे तेरी फोटोग्राफी का....बाबूजी का दिया है तो क्या दिक्कत...."
"फोटोग्राफी गयी तेल लेने".....अपने को बिज़नस थमा दिया अब क्या ग्राहको की फोटो खींचता रहूँ....
मैंने बाबूजी को समझाया पर उन्होने कुछ नहीं सुनी.....बस अब उसी मे रमा हूँ मन तो लगता नहीं पर क्या करे....???
"बाबूजी ने धंधे मे बड़े घाल-मेल किए है....कितनों के कर्ज़ो से लदा हूँ मैं.....अब मुझे एक तो ये बिज़नस समझ नहीं आता....ऊपर से रोज़ तड़े रहते लोग अपना पैसा मांगने लिए.....क्या कहूँ....क्या करूँ...."
कभी-कभी सर फोड़ने का मन सा होता....
अजय ने भी पलटते हुए सवाल किया
ओहह.....माजरा अब रोहन के पल्ले पड़ चुका था.....
बड़ी देर चुप-चाप सा हो गया वो....
"आज भी काम का बहाना लेके तेरे से मिलने आया हूँ.....ऐसी भी क्या कमाई की लोग अपने यारो को भूल जाये....और तू भी तो कभी याद नहीं करता...."
और तेरे सपने का क्या....रोहनप्यारी को क्यूँ रुलाता है रे उसे आराम करने दे अब कितने किस्सो मे उसको जोड़ेगा.....वो थक गयी है अब यादों का बोझ उठाते 
"मेरे सपने....हा हा हा .... गरीबों के सपनों मे भी सरकार टैक्स लगाती ये नहीं पता तुझे...."...रोहन ने पलटी मारी....
टैक्स लगाती....????
हाँ टैक्स लगाती....लोन लेके आईएएस की तैयारी करने गया था दिल्ली....उसकी खातिर अपने आप को भट्ठी मे झोंक दिया पर....किस्मत मुंह छुपाये खड़ी रही मुझसे....!!
बैंक वालों ने कंगाल कर दिया....उसी बीच बाबूजी का देहांत हो गया.....!!!
माता जी भी उसी वियोग मे ज्यादा न जी सकी....!!
"अबे हम तो बर्बाद हो गए रे.....!!!"
"बस एक पेपर मिल मे टाइपिस्ट हूँ...गुज़र बसर हो रहा"
"अब तो इक्षा ही नहीं रही कुछ पाने की....या खोने की...."
(रोहन ने आँखों को रुमाल से पोछते हुए कहा)
अजय से अब रहा ना गया....उसके आँख भी सहसा रो पड़े....चाचीजी....चाचाजी.....हे भगवान.....!!!
अब दोनों इतने शांत हो गए की अब झरनो की कोलाहल कानो को डंस रही थी.....!!!
कुछ रोहन बोलता....कुछ अजय....फिर शांति....
फिर अजय बोलता....और रोहन .... फिर शांति....
और देखते ही देखते साँझ हो आई....

(सीन 3)
दोनों लौट रहे थे.....रात ऊपर आ चुकी थी.....
सड़कों से कितने दोराहे...तिराहे....छिटक रहे थे....
शायद...इन्ही तिराहो पर फिर से छिटक जाएंगे....
ना जाने कितने रोहन-अजय के सपने....!!!!
गाने मोबाइल से निकाल अब कानो को सराबोर कर रहे थे....
.......और गाना चल रहा था.....
"सारे सपने कहीं खो गए....हाय हम क्या से क्या हो गए".....
(स्वर-अल्का यागनिक, गीतकार-जावेद अख्तर, फिल्म- तुम याद आए)

- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)

14 टिप्‍पणियां:

  1. रोहन और अजय की मैत्रीपूर्ण वार्ता कई अपने मित्रों की स्मर्तियाँ दे रहा है।

    वहीं कथा का मर्म कुछ सपनों की दास्ताँ सूना रहा है

    इस पर ख्याल आया

    वक्त के सांचे में सब ढल जाता है
    बाप भी एक ख्याब देखे जाता है

    हो शिकायत तो याद रखना ये भी
    अपने सपने के पहले कोई आता है

    इसकी खुशी और अपनी खुशियाँ
    यही सब इंसान ढूंढें चला जाता है

    रह जाता है गिला पीछे कहीं पर
    जो पड़े पड़े एक दिन गल जाता है

    गले बहिंया जिन्दगी के दाल चलो
    तूम्हारा सपना हावी न हो पाता है

    हाँ होंगे सपने जो शिद्दत से लग गये
    बस जज्बा ही कमजोर हो जाता है


    सब कुछ बन जाना चाहते हैं दोस्त
    बस किश्तों को नही चुका पाता है

    बहुत अच्छी है कहानी ...बहुत खूब

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  2. क्या खूब लिखते हो .......... बहुत बहुत बेहतरीन !!

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    1. मुकेश भैया आप लोग पढ़ रहे इतना ही काफी हमारे लिए।

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  3. सड़कों से कितने दोराहे...तिराहे....छिटक रहे थे....
    शायद...इन्ही तिराहो पर फिर से छिटक जाएंगे....
    ना जाने कितने रोहन-अजय के सपने....
    राहुल एक सुन्दर संवेदनात्मक अभिव्यक्ति लिए हुए कथा....
    सच है जीवन में अनेक उतार चढाव आते है हम अपने तमाम रिश्ते और दोस्तों से पहले जैसे सम्बन्ध नहीं रख पाते परन्तु हमारे स्मृति पटल पर वह अमूल्य स्मृतियाँ सदैव जीवित रहती हैं....रिश्तों पर समय की धूल अवश्य जम जाती है पर उनका स्पंदन हम सदैव अनुभव करते है और ज़रा सी हवा से ये धूल हट जाती है। यही शायद हमारे जीवन की अमूल्य धरोहर भी है ह्रदय के कोमल प्रकोष्ठ को स्पर्श करती सुन्दर कथा।
    कुछ पंक्तिया यूँ ही याद आ गयीं.....
    स्मृतियों की सहज वेदना पीड़ित कर देगी जब तुमको
    अश्रु जलधि में बिन्दू रूप में तब देखोगे तुम मुझको
    कुछ पल छिन बीते जो मधुरतम याद बहुत तो आयेंगे
    बीती रजनी संग जाता चंदा याद करे ज्यो ताम को।

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    1. प्रियंका दीदी।।
      हाँ जीवन में सीधे रास्ते मिलते कहाँ।।

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  4. Bhai kya kahein tumne to spellbound kar diye kuch bhi kahate nhin ban RHA hai
    bas ab kai aur Rohan-Ajay ki kahani kahin phir baneNgi tere blog ka hissa ................
    Jis rah par bichadi thi do yaaron ki dagar wahi raste kahenge is DOSTI ka kissa...............

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    1. हाँ कुछ सवाल छोड़ गई कहनी।
      जिसका जवाब पाठक पर निर्भर है।
      कहानी अधूरी हो के भी आत्मसात करती कितनी सच्चाइयों से।

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-03-2014) को "कितने एहसास, कितने ख़याल": चर्चा मंच: चर्चा अंक 1567 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    अभिलेख द्विवेदी

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  6. बहुत ही सुन्दर लिखा है राहुल भाई आपने कई दिनों से समय नहीं मिल पा रहा था ...आज समय मिलते है सबसे पहले आपके ब्लॉग पर ही नजर दौड़ा दी हमने

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    1. बिल्कुल आप नजरें दौड़ाते रहिए।
      और हम कलम।

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  7. मानवीय संवेदनाओं का सुन्दर सयोजन....विस्मित करती है दो दोस्ती की आपसी समझ और एक दुसरे के लिए एहसासों का वक़्त बीत जाने के बाद भी जीवंत रहना....सार्थक रचना

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