बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 15 मार्च 2014

यादें १


कई बरस हुए
अब नहीं जाता उस गली से....

चौराहे पे तपती
धूप मे खड़ा लंबा पोल
आजकल मुझे देख मुंह फेर लेता....!!!

पाँव मे लकवा खाए
अभी भी अड़ा खड़ा
गवाह है वो हमारी सारी मुलाक़ातों का...!!!

पर देख उसमे भी
अनगिनत कमी निकाल
आज लोगों ने उसे भी बदल दिया...!!!

साथ ही भस्म
हो गए डायरी से लिपटे अधूरे पत्र....
नज़्म की बॉटल भरी खारी छाछ भी लापता....!!!

कल जाऊंगा तो
इश्तिहार लगाऊँगा....
नाम...रंग...साथ अपनी एल्बम की तस्वीर....!!!

©खामोशियाँ-२०१४

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