भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
शुक्रवार, 21 मार्च 2014
पुराने कांटैक्ट
सेल-फोन बदलते ही
गृह-प्रवेश होता,
कुछ नए/पुराने कांटैक्ट* का....!!!
कुछ डिलीट** करते
कुछ संजो लेते....!!!
जीवन भी तो ऐसे ही
करवट लेता,
नए चेहरे के साथ...
नए रिश्तेदार....!!!
खामखा परेशान रहते,
ख्वाइशों की रंगीनीयों मे...
क्या फायदा,
ज़िंदगी बैकप*** नहीं बनाती..
नए सिरे से लिखती है फिरसे....!!
(contact* delete** backup***)
©खामोशियाँ-2014
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Simple words with deep meaning...happy to read your poems..nice one........:)
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