बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 20 मार्च 2014

मुखौटे



हजारों मुखौटो में से तुझे ही उठाता हूँ.....
चेहरा देखा नहीं फिर भी बताता हूँ.....!!

कलम भरी पोटली अपने सर लादे....
सबके हाथों से मिटी लकीरें सजाता हूँ....!!

इन्सानो के महफिल में ठहरा रहा....
यादों को ज़िंदगी का जाम पिलाता हूँ....!!!

चीख़ों से सजी एक चारदीवारी में....
तांवों को तपाकर एहसास पकाता हूँ....!!!

बेवकूफ़ियाँ बढ़ा लीं हैं खुद की इतनी....
तनहाइयाँ भगाकर परछाइयाँ बुलाता हूँ....!!!

©खामोशियाँ-२०१४

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