हजारों मुखौटो में से तुझे ही उठाता हूँ.....
चेहरा देखा नहीं फिर भी बताता हूँ.....!!
कलम भरी पोटली अपने सर लादे....
सबके हाथों से मिटी लकीरें सजाता हूँ....!!
इन्सानो के महफिल में ठहरा रहा....
यादों को ज़िंदगी का जाम पिलाता हूँ....!!!
चीख़ों से सजी एक चारदीवारी में....
तांवों को तपाकर एहसास पकाता हूँ....!!!
बेवकूफ़ियाँ बढ़ा लीं हैं खुद की इतनी....
तनहाइयाँ भगाकर परछाइयाँ बुलाता हूँ....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंlatest post कि आज होली है !