बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 22 मार्च 2014

बदलाव


टूटे-फूटे जर्जर
कुल्फीयों के साँचे,
सर्दियों की
रज़ाई से निकाल आए....!!!
किसी को 
नज़ला हुआ...
कोई खांसी से परेशान...!!!

सभी अनसन पर है....
बुजुर्गो को पेंशन दो....
हमारी आमदनी निर्गत करो....!!!

बड़ी टाल-मटोल बाद
वैद्यजी बुलाये गए
नब्ज़ टटोल
कुछ तो फुसफुसा रहे....!!!

कह रहे होंगे....
बदलाव का मौसम,
बिना चोट के कहाँ जाता....!!!

©खामोशियाँ-२०१४ 

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