तोड़े है ये आईने ज़िंदगी के....
अब खुद की खुद से मुलाकात किए
बरसों गुज़र जाया करते....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
ह्रदयास्पर्शी लेखन भाई ....साथ आपके भाव्नुरूप रूपक हमेशा ख़ास बनाती अभिव्यक्ती।
जवाब देंहटाएंसादर
भैया आपका पीठ थपथापना हमेशा से सुखद अनुभव होता...!!!
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