पाँव मे जूते पहने तैयार खड़े....
घोड़ा टूटे पैर....
ढाई-पग चलता....
ऊंट तिरछी....
आँखेँ मारता रहता....!!!
वज़ीर लक़वा खाए...
हथियार नहीं उठाता....
हाथी कान कटवाए...
घमंडी हो चुका अब....!!!
ज़िंदगी की विसात....
अब शतरंज से ज़्यादा उलझ गयी....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
ज़िंदगी की विसात....
जवाब देंहटाएंअब शतरंज से ज़्यादा उलझ गयी....
सही बात।
सुन्दर रचना।