बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

ज़िंदगी की शतरंज


मोहरे सजे-धजे....
पाँव मे जूते पहने तैयार खड़े....

घोड़ा टूटे पैर....
ढाई-पग चलता....
ऊंट तिरछी....
आँखेँ मारता रहता....!!!

वज़ीर लक़वा खाए...
हथियार नहीं उठाता....
हाथी कान कटवाए...
घमंडी हो चुका अब....!!!

ज़िंदगी की विसात....
अब शतरंज से ज़्यादा उलझ गयी....!!!

©खामोशियाँ-२०१४

1 टिप्पणी:

  1. ज़िंदगी की विसात....
    अब शतरंज से ज़्यादा उलझ गयी....
    सही बात।
    सुन्दर रचना।

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