सारे एक ही जैसे कितने......
....लेटे हैं एक बगल एक....
एक बड़ा ताबूत सा है.....
.....जिसके अगल-बगल
ऊंची-नीची पेंटिंग सजाई हैं....!!!
बचते ऐसे मानो....
......अगला नंबर उनका ना हो
सर के बल घसीटे जाते.....
....बड़ी बेरहमी से
खुरदुरी सतह पर.....!!!
चीख कर जल जाते....
....सारे अरमान एक ही बार मे
बिलकुल उसी....
...."माचिस की कांटी" जैसे.....!!!
रोते आज भी....
.....टूटे अगरबत्तियों के सीके....
अकेले ही पड़े हैं आज भी
.....उसी स्टैंड मे अटके...!!!
ऐश-ट्रे भी भंठी पड़ी....
....कितनों की आस्थियाँ से
जो आज भी वहीं.....
.....कौन ले जाये उन्हे
इस विएतनाम से उठा के....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
डॉ साहब धन्यवाद...एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ .... !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एहसास की अभिवक्ति !
जवाब देंहटाएंनया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
नई पोस्ट नया वर्ष !
धन्यवाद///बिलकुल आपके ब्लॉग के दर्शन करूंगा....!!
हटाएंबढ़िया रचना -
जवाब देंहटाएंआभार भाई-
धन्यवाद....स्वागतम....आभार....
हटाएंनव वर्ष की बधाई.....!!!
बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंपांडे जी स्वागतम...नव वर्ष खुशियों की सौगात लाए.... !!
हटाएंप्रतिभा जी स्वागत हैं हमारी खामोशियों की दुनियाँ मे...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष मंगल मय.... आपको भी...!!!
अन्दर तक सिहरा देने वाला ख्याल है
जवाब देंहटाएंबदन में झुरझुरी सी आ गयी
एक बात तो है, नज़रिया आपका बड़ा पैना है
क्या आपकी नज़्म का प्रयोग आपके नाम से अपने शोध कार्य में कर सकती हूँ ?
बिल्कुल जरूर स्वागत है।
हटाएंअंतस को छुती रचना
जवाब देंहटाएं