कुछ ख्वाहिशें हम भी पालना चाहते हैं,
थोड़ा ही सही पर रोज मिलना चाहते है।
मरने का कोई खास शौक नहीं है हमें,
जिंदा रहकर बस साथ चलना चाहते हैं।
रोज आता चाँद पुरानी बालकनी पर,
ऐसी ही कुछ आदतें डालना चाहते हैं।
यादों के कोरों में बूंद जैसा रिसकर,
अकेली नुक्कड़ पर घुलना चाहते है।
कभी मिलो ज़िंदगी फुरसत में मुझसे,
तेरे साथ एक सुबह खिलना चाहते हैं।
©खामोशियाँ-2018 | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(05-सितंबर-2018)