इतने दिनों तक तो चुप था दिल,
चल उसे भी कुछ कहने देते हैं।
आ जाएगी अपने रिश्तों में चमक,
खुद को अंदर तक जलने देते हैं।
कब तक सहेज पाएंगे राज अपने,
खोल किताब उनको पढ़ने देते हैं।
एक अधूरी गज़ल पड़ी बरसों से,
चलो किसी को पूरा करने देते हैं।
चुप रहकर पत्थर हो गया था मैं,
हर रोज कुछ आदतें पलने देते हैं।
यूं ही नहीं बातों में ज़िक्र अपना,
दिल पर मीठा जुल्म सहने देते हैं।
- मिश्रा राहुल (13-मई-2018)
(©खामोशियाँ-2018) (डायरी के पन्नो से)
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