बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 13 मई 2018

राज

इतने दिनों तक तो चुप था दिल,
चल उसे भी कुछ कहने देते हैं।

आ जाएगी अपने रिश्तों में चमक,
खुद को अंदर तक जलने देते हैं।

कब तक सहेज पाएंगे राज अपने,
खोल किताब उनको पढ़ने देते हैं।

एक अधूरी गज़ल पड़ी बरसों से,
चलो किसी को पूरा करने देते हैं।

चुप रहकर पत्थर हो गया था मैं,
हर रोज कुछ आदतें पलने देते हैं।

यूं ही नहीं बातों में ज़िक्र अपना,
दिल पर मीठा जुल्म सहने देते हैं।

- मिश्रा राहुल (13-मई-2018)
(©खामोशियाँ-2018) (डायरी के पन्नो से)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें