बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 28 जुलाई 2018

दुनिया

कुछ जरूरतें तेरी तो कुछ हमारी है,
इन बातों में उलझी दुनिया सारी है।

मोहब्बत की मुखबिरी कौन करता,
पूरा शहर ही इस खेल का मदारी है।

हर शख्स किसी मीठी जेल में होता,
खाकर सबने अपनी सेहत बिगाड़ी है।

चेहरे की मुस्कान उनको पचती कहाँ,
दुख बाटना ही जिनकी दुकानदारी है।

फेट रहा हूँ पत्ते लौटाने सबकुछ आज,
तेरी उम्मीद ही तेरी असल बीमारी है।

©खामोशियाँ - 2018 | मिश्रा राहुल
(26 - जुलाई -2018)(डायरी के पन्नो से)

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