बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

सोमवार, 1 मई 2017

मैं हूँ

मैं हूँ
खुद में कहीं,
खोया हूँ
खुद में कहीं।

बदलकर
भी देखा,
बहलकर
भी देखा।

खोजता हूँ
खुद को वहीं,
जहां छोड़ा था
तुझ को वहीं।

मैं में
मैं हूँ,
कि नहीं।
तुझ में
मैं हूँ
कि नहीं।

जानता
हूँ ऐसा,
ना जानकर
हूँ ऐसा।

चाहता हूँ
रहूं मैं खुद में।
खोज रहा हूँ
खुद को
खुद में ही कहीं।

- मिश्रा राहुल
(1-मई-2017)

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