जब सामना होगा तो बात भी हो जाएगी,
पुरानी अटकी हुई वो रात भी हो जाएगी।
जवाब खोजेंगे दो लफ्ज़ अपने तरीके से,
बदले चेहरों से मुलाक़ात भी हो जाएगी।
कब तक रखोगे रद्दी अपने नज़्मों की
जब चिंगारी बढ़ेगी तो राख भी हो जाएगी।
कितनी झुर्रियां लद चुकी हैं पालते पालते,
आईने खुद बोलेंगे तो हिसाब भी हो जाएगी।
अगले चौराहे से बदलेंगे कारवां-ए-ज़िंदगी,
चाँद लेकर चलेंगे तो आदाब भी हो जाएगी।
©खामोशियाँ | 21- अप्रैल-2017
(मिश्रा राहुल) (डायरी के पन्नो से)
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंशुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसुंदर 👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्वेता जी।
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