अच्छा विदाई की समय रोने को लेकर ऐसा क्या बवाल मचाया जा रहा। यहां तक की क्रैश कोर्स तक चलाया जा रहा कि विदाई के समय अगर आपके आंखों से आंसू नही आ रहे तो कैसे प्रबंध किया जाए।
कुछ विक्स, ग्लिसरीन तक के टिप्स दिए जा रहे। यहां तक की तमाम एक्टिंग क्लासेज भी चलाई जा रही। पर मुझे यह नही समझ आ रहा। इमोशन्स को उभरने दें खुद से, वास्तविक ज़िंदगी में भी आखिर बनावटीपन क्यों?
ट्रेडिशन क्या होता है? रिवाज़ क्या होता है? विदाई में रोना रिवाज़ है। नही रोया तो नए जमाने की लड़कियां।
हद है अजीब भी है, पर हो रहा है।
- मिश्रा राहुल | २६-मई-२०१७
( ब्लॉगिस्ट एवं लेखक )
दिनांक 30/05/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
नया दौर है त नया ही होगा ... पर लड़कियों का रोना ज़रूरी नहीं ...
जवाब देंहटाएंभावनाओं पर लग़ाम नहीं कसी जाती ,घोड़ों के सन्दर्भ में उचित प्रतीत होता है ,सुन्दर प्रस्तुति ,आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंपरम्परा को ढोते समाज का सच कहती विचारणीय रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएं