बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 13 नवंबर 2016

लप्रेक 14

साक्षी के गोरे से हाथों को अपनी बड़ी हथेली में बिछाकर, संजय लकीरों से लुका छिपी खेल रहा था।
कुछ देर चुप रहा। फिर अचानक से बोल पड़ा। अपनी तेरी जोड़ी सुपरहिट है। हथेलियों के मकड़जाल में से एक धागे को छूकर उसने साबित भी किया।


साक्षी चुपचाप हंसनें लगी और बात बड़े शायराना लहजे में समेट दिया।
"हर रोज़ खोजते हो मेरी हाथो की लकीरों में,
ऐसे छेड़ने के अंदाज़ में भला कौन न फ़िदा हो।"

फिर नज़रों की गुफतगू नें पूरा मंज़र रूमानी कर दिया।

- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवम् लेखक)

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