पकड़ कर तलवार तू चल कभी ए यार,
जीनीे है तंग गलियां कोई दोष न दे बार।
गर फलसफा होगा यही भंग करना है तुझे,
हाँ मोड़ दे तू अब लकीरें दोष न दे यार।
ज़िन्दगी हैं जब चलेगी चलती ही जाएगी,
खेंच कर दे पतवार कोई दोष न दे यार।
जिल्लतों की पर्ची फाड़ कर दे फेक तू,
सामने बैठा मुक़द्दर है अब दोष न दे यार।
- मिश्रा राहुल (ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
(06-अक्टूबर-2016)(डायरी के पन्नो से)
जीनीे है तंग गलियां कोई दोष न दे बार।
गर फलसफा होगा यही भंग करना है तुझे,
हाँ मोड़ दे तू अब लकीरें दोष न दे यार।
ज़िन्दगी हैं जब चलेगी चलती ही जाएगी,
खेंच कर दे पतवार कोई दोष न दे यार।
जिल्लतों की पर्ची फाड़ कर दे फेक तू,
सामने बैठा मुक़द्दर है अब दोष न दे यार।
- मिश्रा राहुल (ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
(06-अक्टूबर-2016)(डायरी के पन्नो से)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें