तभी अंजू नें सवाल किया सबसे कीमती चीज क्या है तुम्हारी सुनील बोल पड़ा बातें। इधर अंजू नें ठहाके मार कर कहा, हाँ वो न बंद हो सकती और न पुरानी।
इतने देर में दोनों अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट की मनपसंद सीट पर जा बैठे। आर्डर हो गया और शुरू हुआ बातों का सिलसिला वो भी क्यों न हो आखिर पूरे चार साल बाद जो दोनों मिले थे।
दरअसल अंजू बड़ी अड़ियल लड़की थी कॉलेज की और सुनील बड़ा सीधा सा लड़का। दोनों की केमिस्ट्री न कॉलेज को समझ आई, ना उन्ही दोनों को।
अंजू के अंदर लड़कों के गुण थे। देर रात तक डांस बार, घूमना फिरना, बिंदास रहना। वहीँ सुनील बड़ा शांत, गंभीर और मझा हुआ बंदा। कोई मेल नहीं था दोनों में लेकिन साथ थे दोनों। प्यार है ना हो जाता पूछता नहीं।
बातों बातों में दोनों की शाम हो ही जाती। आज भी वही बातें जिनको अगर टेप-रिकॉर्डर चलाके भी सुनो तो हू-ब-हू एक मिलेंगी।
कॉफ़ी हर बार जैसी ठंडी हो गयी। टोस्ट कड़े हो गए। टेबल पर बिल आ गया और सुनील बस एक टक अंजू की आँखों में झांकता रह गया।
"सुनील वेटर बिल लेके आया है कहाँ खोये हो।" अंजू नें पूछा
"ओह हाँ बिल अंजू तुझमे इतना घुल जाता ना और कोई सूझता नहीं मुझे।" सुनील नें कहा
सुनील नें जेब में हाथ डाला। और मिला 500 रुपए का नोट। जिसे देखकर वेटर नें नाक-भंव सिकोड़ लिए। किसी तरह समझ-बुझाकर अंजू नें वेटर को हटाया।
"सुनील आज तो मैंने भी जल्दबाजी में अपना पर्स भूल आई। देखो कुछ और है क्या तुम्हारे पर्स में।" अंजू नें मुस्कुराते कहा
"हाँ है पर मैं वो दे नहीं सकता।" सुनील नें अपना फैसला सुना दिया
"पर ऐसा क्या है, जो नहीं दे सकता" अंजू नें उत्सुकता से पूछा
"यार ये वो चार सौ रुपए है जो तुमने मुझे अपना बिज़नस शुरू करने को दिया था। कितनी दिक्कतें आई मैंने इसे खर्च नहीं किया। और मैं इसे इस्तेमाल नहीं कर सकता बस" सुनील नें सफाई दी
"लेकिन पेमेंट कैसे" अंजू इतना बोल पाई की उसने रोते हुए सुनील को गले से लगा लिया।
इधर मंजर रूमानी होता जा रहा था। तभी बैकग्राउंड से आवाज आई। टेबल नंबर 9 का पेमेंट हो गया है।
दोनों चौंककर मेनेजर को देखने लगे।
हाँ भाई आज आपकी 25वीं डेट है, तो मेरी रेस्टोरेंट नें आपकी ट्रीट को फ्रीबी कर दिया।
दोनों की आँखें मेनेजर को थैंक्यू कर रही थी। और मेनेजर साहब नें आँखों में ही थैंक्यू कबूल भी कर लिया।
- मिश्रा राहुल (डायरी के पन्नो से)
(ब्लॉगिस्ट एवं लेखक) (13-नवम्बर-2016)
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