बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

बेरुखी

इतनी भी बेरुखी से देखा ना करो,
मैं रोता हूँ शौक से पूछा ना करो।

थोड़ी सी गुजाइश मुझसे भी रखो,
मैं खुदा का बंदा हूँ खुदा ना करो।

लकीरें उभरेंगी कुछ और कल तक,
आज को देख कल तौला ना करो।

काफिर नहीं हूँ जो गुजरता जाऊँ,
हर बार बढ़ने को बोला ना करो।

सुलझाने में और उलझ गयी तू,
गांठ चढ़ने दो उसे खोला ना करो।


 ©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल

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