बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 31 मई 2016

लप्रेक १३



जानती हो श्रेया हेडफोन का बायाँ शिरा तुम्हारी कानों में क्यों लगाता ? गानों की इमोशनल बातें बाए कानो तक जल्दी पहुँचती।

"अच्छा जनाब, फिर दाहिने कानो का कॉन्सेप्ट समझाइये" श्रेया नें पूछा

मेरा हेडफोन का दाहिना शिरा खराब है। गानों की लब्ज़ों को तुम्हारे होंठों से टटोलकर, तुममें खो जाता हूँ।

फिर तीन शब्दों को चार शब्दों में बनाकर बातें ख़त्म हो गयी और गानों की धुन में माहौल सराबोर हो गया।

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