बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 31 मई 2016

लप्रेक १२

एनफील्ड की पिछली सीट पर बैठी दिव्या पिछले दस मिनट से बोले जा रही थी। कुछ रेस्पॉन्स ना आता देख उसनें खीजते हुए कहा, "या तो अपनी ये फटफटी बेंच दो या मेरे साथ पैदल चला करो। दोहराने में फिर से वही इमोशन नहीं ला पाती मैं।"

रिशब नें मुस्कुराते कहा, "याद है इसी एनफील्ड पर तुम्हे सबसे पहले बेतियाहाता की चमचमाती सड़कों पर घुमाया था। फिर भी लाख बात की एक बात होती तुम्हारी।

अगले दिन रिशब नें पहली बार दिव्या के घर पहुचकर कॉल किया।
रिशब नें कहा, "हेल्लो दिव्या बहार आओ मैं आ गया"।
दिव्या बाहर आते ही, दंग रह गयी।
सामने खड़ी थी सफ़ेद चमचमाती होंडा एक्टिवा।
रिशब नें मुस्कुराते कहा,"एनफील्ड थी बस दिव्या थोड़े थी।"

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