बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

काफिला


काफिला रुका तो नहीं पर चलता कहाँ है....
दिल सहमा ही तो है अब मचलता कहाँ है.....!!!

सीने मे बर्फ ज़माएँ टहलते लावों पर....
बदन तपता रहता पर पिघलता कहाँ हैं....!!!

एक बरस लग ही जाती बात सुलझाने मे...
मौसम भी दस्तखत ठहरा बदलता कहाँ है....!!!

दोनों हाथो से खीचते लगाम रात-दिन...
काफिला खड़ा ही रहता रोज़ सरकता कहाँ हैं....!!!

©खामोशियाँ-२०१४ 

1 टिप्पणी:

  1. वाह भाई वाह। क्या कहना, सच है कई बातें होती है जो सुलझाने में कितने वक़्त बीत जाते है...खूब लिखा!!

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