रण लड़ो मत मूक बनो....
टंकार लगाओ....गर्जन सुनाओ....
जीत की हवस का अलाव जलाओ....!!!
गाँडीव पड़ा लाचार....कर रहा पुकार....
उठो....लड़ो....और विजय सुनाओ....!!!
इंद्रियाँ पकड़ो विद्रोह हैं कैसा....
बदलेगा मनुज वक़्त हैं ऐसा....
तीर उठाओ....प्रत्यंचा चढ़ाओ....
आग की उन्माद का विस्फोट लगाओ....!!!
गाँडीव पड़ा लाचार....कर रहा पुकार....
उठो....लड़ो....और विजय सुनाओ....!!!
शास्त्र है साथ तो फिर डर है कैसा....
जो लड़ता आखिर विजय उसी का होता....
दिशा पकड़ो....दशा पकड़ो.....
काल की प्रलय का नशा पकड़ो....!!!
गाँडीव पड़ा लाचार....कर रहा पुकार....
उठो....लड़ो....और विजय सुनाओ....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
आज कर्म करने वालों की कमी है .. गांडीव थामने वालों की कमी है .. उठो ..
जवाब देंहटाएंआह्वान है ये कविता ...
बहुत सुन्दर और सार्थक आह्वान....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .
जवाब देंहटाएंअर्जुन अभी सो रहा है ....उसे उठाने के लिए सार्थक आह्वान !
जवाब देंहटाएंnew post बनो धरती का हमराज !
अच्छा आव्हान गीत है ...बधाई....कुछ वर्तनी की एवं व्याकरण की त्रुटियाँ हैं...सुधार करलें ...यथा...
जवाब देंहटाएं---जो लड़ता आखिर विजय उसी का होता....= विजय उसी की होती
---काल की प्रलय का नशा पकड़ो....???? पकड़ो ????
--जीत की हवस का अलाव जलाओ... हवस सभी की गलत होती है....
वीर रस से पंक्तियों ने प्राण फूंक दिए अभिव्क्ती में ...
जवाब देंहटाएंआज तरुण वर्ग यदि जाग जाएगा
तभी भविष्य उल्हास मना पाएगा
अन्यथा विकट चुनौतियों ही होंगी
नन्हा कदम भी न कभी चल पाएगा
खुशी की बात है की आप वो तरुण हैं जो आगे बढ़ क्र आये ।
माँ शारदा आप पर ऐसे ही आशीष वर्षा करे
शुबह्कामनायें!