भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014
चुनाव
चुनाव एक पहेली है....कौन कहता सहेली है....
रोज़ चले आते दौड़े.....पैसों की होती होली है....!!!
नाम पुकारते पुचकार के....
दान दिलाते बड़े प्यार से....
अन्न खत्म हो जाता जब....
थाल सजाते बड़े प्यार से....!!!
मौसम की चाय कहाँ छनती...
कॉफी पिलाते इतमिनान से....
गाँव-शहर तब एक सा लगता...
बिजली रुकती स्वाभिमान से....!!!
रोज़ खड़ी रहती बन-ठन के..
वो गाँव की पहली ड्योढ़ी है....!!!
चुनाव एक पहेली है....कौन कहता सहेली है...
रोज़ चले आते दौड़े.....पैसों की होती होली है....!!!
कुशाशन खाट पे लेटा...
आग सेंकती छोरी है....
बड़े-बूढ़े सब जुगत मे रहते...
सड़क चमकती गोरी है...!!!
दुशाशन साड़ी बंटवाता....
कृष्ण यहाँ की चोरी है...
वक़्त बेवक्त शक्ल बदलता
गद्दी की छोरा-छोरी है....!!
चुनावी वादे सबको लुभाते....
आँखों मे बस्ती लोरी है....!!
चुनाव एक पहेली है....कौन कहता सहेली है...
रोज़ चले आते दौड़े.....पैसों की होती होली है....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
बरसात में भीगती शाम में अकेले तनुज अपनी दूकान में बैठा रास्ता निहार रहा था सुबह से एक भी कस्टमर दुकान के अन्दर दाखिल नहीं हुआ। तनुज से ब...
-
सूनी वादियों से कोई पत्ता टूटा है, वो अपना बिन बताए ही रूठा है। लोरी सुनाने पर कैसे मान जाए, वो बच्चा भी रात भर का भूखा है। बिन पिए अब...
बहुत बढ़िया भाई जी-
जवाब देंहटाएंबधाई-