कितनों के दुखड़े सुनता,
कितने कष्ट झेल लेता है,
सुबह उगलता सूरज को,
शाम खुद लील लेता है...!!!
शाम खुद लील लेता है...!!!
कभी भरी दुपहरी मे
पाँव पसार कर सोता है ,
कभी रात मे अकेल बैठे
सितारे उधार पर लेता है....!!!
डूबने चले आते उसमे
खुद मे उनको छुपाता है,
नन्हें बच्चे पत्थर मारते
प्यार से उन्हे मनाता हैं...!!!
कहीं उचक बादल बनता
कहीं बरस भर जाता है,
कहीं दूर तक भागने को
रेल को छूने आ जाता है...!!!
रोज़ खुद पर खड़ा देख....
बहुत दुखित हो जाता है
बहुत दुखित हो जाता है
वो बूढ़ा दरिया आज भी
बड़का दादा कहलाता है....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
Bahut khub likha Bhai..bahut umda!
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