कुछ दस फीट नीचे....
पक रहे एहसास...
एक बटुली चढ़ी है....
कंडो की सेज़ पर....
उफान मार रही कितनी....
नीचे तप रहा....पूरा कमरा भरा पड़ा
कलम की निब डुबो कर लिख ले....!!!
वरना उड़ जाएंगे सारे....
बिना कोई सबूत छोड़े....चिमनीयों से....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (14-02-2014) को "फूलों के रंग से" ( चर्चा -1523 )
में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर.....
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