भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014
पुराना स्कूल
कितनों को बनाकर खुद टूट सा गया.....हर बार ये ख्याल मेरे जेहन मे आता जब भी मैं टूटे खंडहर मे रूककर अपने स्कूल के गेट को निहारता हूँ....खुद पर लाल रंग की परत ओढ़े....कराह रहा....बड़ी दूर तक टकराकर उसकी आवाज़ गूँजती है मानो....छुट्टी होने को लगाई घंटी किसी के कानो को सराबोर कर जाती....!!!
ईंट-ईंट हिल से गए है....अब ना तो ब्लैक-बोर्ड है ना ही चाक....सब कुछ बिखरा पड़ा ज़मीन पर.... एक टूटी सी छप्पर है कभी जिसके कंधे पर हम अपनी साइकल लगाया करते थे...पर आज कोई साइकल नहीं....काका भी नज़र नहीं आ रहे कलम कान मे फंसाये चलते थे...!!!
आज बड़ी जल्दी छुट्टी हो गयी या लगता है कोई आया ही नहीं क्या हुआ आखिर....बसंत अभी है और मानो गरमी की मायूसी स्कूल की सड़कों पर छाई हो....!!!
आखिर हुआ क्या यहाँ पर कोई नहीं जानता....या बताना नहीं चाहता....
मैंने भी काफी लोगो से पूछा पर फुर्सत नहीं किसी को....
पास मे गुजरती हुई स्कूल की दाई दिखी.... मुझे देखते ही उसको ऐसा लगा मानो, बड़े दिनो बाद माँ अपने लाडले से मिली हो जो किसी हॉस्टल मे रह कर पढ़ रहा हो.....!!!
उसका मन था लिपट के रोने का दुख बांटने का, हाँ कुछ मेरा मन भी ऐसा ही था....
बहुत देर तक मैं उसे देखता फिर अपने स्कूल को और सहसा ही दोनों की आँखों से मोती बरसते जा रहे थे....
फिर थोड़ा सम्हाल के मैं पूछा "अम्मा क्या हुआ हमारा स्कूल किसने तोड़ दिया...." (आवाज़ मे इनता वज़न था की बस कुछ दूर जाके ही थम गया)
अम्मा ने सर हिला के विद्यालय की तरफ इशारा करके बताया की "होटल बनेगा.....राहुल बाबू होटल बनेगा...."
क्यूँ "चौधरी साहब के पास पैसे की तंगी कबसे हो गयी....अच्छा भला तो था अपना स्कूल..." मैंने जवाब मे फिर सवाल उठाया....
अम्मा ने भी उसी लहजे मे उत्तर दिया "बाबू ये बड़े लोग है ... भावना....प्रेम...इनकी शब्दकोश मे नहीं...."
मुझे भी चौधरी कह रहे थे आ जाना तुझे काम दे दूंगा...."पर मैंने ये कहकर मना कर दिया कि मुझसे ये सब नहीं हो पाएगा.."
अम्मा के जाने के बाद ....
अब मुझे माजरा आईने की तरह साफ दिख रहा था....पर ऐसा होना नहीं चाहिए था....!!!
मैंने सोचा "चौधरी जी से मिलू" पर क्या होगा उससे शायद अब थोड़ी देर हो चुकी थी....सब बिखर चुका था....
फिर भी रहम की भीख मांगता वो स्कूल मेरी नज़रो से ओझल ही नहीं होता था....
आज भी जब मैं उस तरफ से गुज़रता हूँ तो ऊंची इमारतों की नीव मे अपने पसीने से सींची हर उस दरार को पहचानता हूँ....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
बूढ़ा दादा
कितनों के दुखड़े सुनता,
कितने कष्ट झेल लेता है,
सुबह उगलता सूरज को,
शाम खुद लील लेता है...!!!
शाम खुद लील लेता है...!!!
कभी भरी दुपहरी मे
पाँव पसार कर सोता है ,
कभी रात मे अकेल बैठे
सितारे उधार पर लेता है....!!!
डूबने चले आते उसमे
खुद मे उनको छुपाता है,
नन्हें बच्चे पत्थर मारते
प्यार से उन्हे मनाता हैं...!!!
कहीं उचक बादल बनता
कहीं बरस भर जाता है,
कहीं दूर तक भागने को
रेल को छूने आ जाता है...!!!
रोज़ खुद पर खड़ा देख....
बहुत दुखित हो जाता है
बहुत दुखित हो जाता है
वो बूढ़ा दरिया आज भी
बड़का दादा कहलाता है....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014
चुनाव
चुनाव एक पहेली है....कौन कहता सहेली है....
रोज़ चले आते दौड़े.....पैसों की होती होली है....!!!
नाम पुकारते पुचकार के....
दान दिलाते बड़े प्यार से....
अन्न खत्म हो जाता जब....
थाल सजाते बड़े प्यार से....!!!
मौसम की चाय कहाँ छनती...
कॉफी पिलाते इतमिनान से....
गाँव-शहर तब एक सा लगता...
बिजली रुकती स्वाभिमान से....!!!
रोज़ खड़ी रहती बन-ठन के..
वो गाँव की पहली ड्योढ़ी है....!!!
चुनाव एक पहेली है....कौन कहता सहेली है...
रोज़ चले आते दौड़े.....पैसों की होती होली है....!!!
कुशाशन खाट पे लेटा...
आग सेंकती छोरी है....
बड़े-बूढ़े सब जुगत मे रहते...
सड़क चमकती गोरी है...!!!
दुशाशन साड़ी बंटवाता....
कृष्ण यहाँ की चोरी है...
वक़्त बेवक्त शक्ल बदलता
गद्दी की छोरा-छोरी है....!!
चुनावी वादे सबको लुभाते....
आँखों मे बस्ती लोरी है....!!
चुनाव एक पहेली है....कौन कहता सहेली है...
रोज़ चले आते दौड़े.....पैसों की होती होली है....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
सोमवार, 24 फ़रवरी 2014
ज़िंदगी की मॉडर्न आर्ट
उलझी छोटी सी ज़िंदगी ....
कूँची भी सुस्त पड़ी,
रंग-बिरंगे शीशे के बॉटल...
अक्सर पूछा करते,
तस्वीरों से हाल-चाल....!!!
कितने आहिस्ता से,
कंघी करता बालों को....
अभी जन्म ब्रुश*
लबों पर भी
लिपस्टिक* चलाता जाता....!!!
रंगो की दुनिया भी अलग...
कुछ काले...कुछ गोरे,
पर खुद भी द्वेष ना पालते....
बड़े मज़े से घुल जाते,
एक दूजे मे....
आखिर सब मिलेंगे
तभी तो बनेगी...
एक सुंदर...एक सफल
ज़िंदगी की मॉडर्न आर्ट*... !!!
*Brush *Lipstick * Modern Art*
©खामोशियाँ-२०१४
गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014
एहसासों की चिमनी
कुछ दस फीट नीचे....
पक रहे एहसास...
एक बटुली चढ़ी है....
कंडो की सेज़ पर....
उफान मार रही कितनी....
नीचे तप रहा....पूरा कमरा भरा पड़ा
कलम की निब डुबो कर लिख ले....!!!
वरना उड़ जाएंगे सारे....
बिना कोई सबूत छोड़े....चिमनीयों से....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014
अनुज के जनम दिवस पर
साल बदले...रोज़ खड़े....
कुछ दांव जीते...कुछ फैसले हारे....
नयी चुनौतियाँ लिए मझधार मारे....!!!
नयी रफ्तार....नया उपचार...
नयी चेतना....नया विचार....
जोश से प्रफुल्लित हैं सारे पतवार...
रणबेरी थामे बैठे विजय की हुंकार...!!!
हर पल....हर क्षण....
हर बल....हर रूप.....
जन्मदिन की शुभकामनाएँ भी हम ऐसी सुनाते....
ज़िंदगी की लत लग जाये बस ऐसी जाल बनाते....!!!
चलो लोगो के लहजे मे अंग्रेजी मे भी बोल देते हैं हॅप्पी बर्थड़े तो डियर विशाल
©खामोशियाँ-२०१४
©खामोशियाँ-२०१४
खाली दिमाग
_______________________________
इतनी "3G" हमे देना "DATA" ....
"Cell" का Signal कमजोर होना....
हमे चले Full Range की कदम पे
भूल कर भी कॉल Miss होना....!!
"Cell" मे "Whatsapp" हैं...."Net Pack" भी...
घर के काम भी बहुत.....और बाकी भी....
तू "Online" हर घर बनाना...
बिल का भुगतान कार्ड से कराना.....!!!
इतनी "3G" हमे देना "DATA" ....
"Cell" का Signal कमजोर होना....!!!
हम ना सोचे कि किसने "Block" किया....
हम ना जाने कि किसने "Like" किया....
दूर करदे अज्ञान के अंधेरे....
लोग Tagg के माया को छोड़े....!!!
इतनी 3G हमे देना DATA ....
Cell का Signal कमजोर होना....!!!
_______________________________
©खामोशियाँ-२०१४
गाँडीव पड़ा लाचार
रण लड़ो मत मूक बनो....
टंकार लगाओ....गर्जन सुनाओ....
जीत की हवस का अलाव जलाओ....!!!
गाँडीव पड़ा लाचार....कर रहा पुकार....
उठो....लड़ो....और विजय सुनाओ....!!!
इंद्रियाँ पकड़ो विद्रोह हैं कैसा....
बदलेगा मनुज वक़्त हैं ऐसा....
तीर उठाओ....प्रत्यंचा चढ़ाओ....
आग की उन्माद का विस्फोट लगाओ....!!!
गाँडीव पड़ा लाचार....कर रहा पुकार....
उठो....लड़ो....और विजय सुनाओ....!!!
शास्त्र है साथ तो फिर डर है कैसा....
जो लड़ता आखिर विजय उसी का होता....
दिशा पकड़ो....दशा पकड़ो.....
काल की प्रलय का नशा पकड़ो....!!!
गाँडीव पड़ा लाचार....कर रहा पुकार....
उठो....लड़ो....और विजय सुनाओ....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014
Flavour Change
रिश्ते टूट जाए .... बिखर जाने दो....
नियम बचे खड़े .... ताज पाने दो.... !!!
लड़ रहे जो .... त्याग करो उन्हे
नए लोग भी .... आज माने दो.... !!!
चीख रहे नजूमी .... जायचा दूर करो ....
हथेली लकीरों भरी .... राज़ पाने दो.... !!!
©khamoshiyaan-2014
काफिला
दिल सहमा ही तो है अब मचलता कहाँ है.....!!!
सीने मे बर्फ ज़माएँ टहलते लावों पर....
बदन तपता रहता पर पिघलता कहाँ हैं....!!!
एक बरस लग ही जाती बात सुलझाने मे...
मौसम भी दस्तखत ठहरा बदलता कहाँ है....!!!
दोनों हाथो से खीचते लगाम रात-दिन...
काफिला खड़ा ही रहता रोज़ सरकता कहाँ हैं....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
रविवार, 2 फ़रवरी 2014
ज़िंदगी
ज़िंदगी के किरने परोसती हैं रूसवाई मेरी....
कदमो के नीचे ऐसे तड़पती हैं परछाई मेरी....!!!
बढ़ते कदमो से भी कहाँ कम होते है फासले....
रात को सीने तक चढ़ती है तनहाई मेरी....!!!
खामियाँ तो बहुत दामन से लगाए बैठे हमने....
रूह से अब कहाँ लिपटती है अच्छाई मेरी...!!!
एक खौफ़ सा चलता रहता ताउम्र साथ मेरे....
चुपचाप रह कर भी डराती है गहराई मेरी....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
-
बरसात में भीगती शाम में अकेले तनुज अपनी दूकान में बैठा रास्ता निहार रहा था सुबह से एक भी कस्टमर दुकान के अन्दर दाखिल नहीं हुआ। तनुज से ब...
-
सूनी वादियों से कोई पत्ता टूटा है, वो अपना बिन बताए ही रूठा है। लोरी सुनाने पर कैसे मान जाए, वो बच्चा भी रात भर का भूखा है। बिन पिए अब...