बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

दोस्ती


एक बच्चा खेलते वक्त सीढ़ियों से गिरा .. उसकी रीढ़ में चोट लगी और उसने बिस्तर पकड़ लिया ! कुछ दिन रिश्तेदार और दोस्त देखने आये फ़िर, धीरे-धीरे सबका आना कम होते-होते बंद हो गया । अकेलापन उसे खाने लगा .... वो बेचैन हो उठा ...तब एक दिन उसकी माँ एक तोता ले आई ...। मिट्ठू .. चोंच बड़ी.. बहुत ही तेज ...चीख कर बोलने वाला छोटा सा मिट्ठू ..! बच्चे ने उसे बोलना सिखाया .. रोज नए शब्द .. रोज नई बातें ! फिर ......धीरे-धीरे वो बच्चा चलने फिरने लगा .. ! फिर दोस्तों में व्यस्त रहने लगा । पढ़ाई और स्कूल ....मिट्ठू को देने के लिए वक्त नहीं था ...अब उसके पास ! मिट्ठू उसको आते-जाते देखता और नाम पुकारता । उसने खाना छोड़ दिया । फिर .. कुछ दिनों के बाद कमजोर हो गया... वो पहले बिल्ली के आते ही बहुत शोर मचाता था .. दो दिन से कुछ बोला नहीं ! सुबह ...लथपथ .. खून से सना पिंजडा मिला !
धमा-चौकड़ी खूब मचाई....
घर-बाहर मे धूम मचाई.....
सीढ़ी ने आदत छुड़वाई
छोटू फिसले ज़मीन लेआई….!!!

चोट थी काफी गहरी लगी....
रीढ़ की हड्डी दुखने लगी....
आते-जाते लोग रहे पर.....
लोग की कमी दिखने लगी....!!!

तनहाई यूँ भारी पड़ी....
छोटू को बात लगने लगी....
माँ से देख अब रहा नहीं.....
बाज़ारी-खिलौने भाया नहीं....!!

काका ने कुछ राय सुझाई....
घर हो मिट्ठू तो क्या हो भाई....
बात कुछ जँचने लगी....
खोज तोते की होने लगी....!!!

पिजरें मे पड़ा घर आया वो.....
छोटू का प्यारा बन गया वो....
लाल-चोंच हरी-खाल बस
राज दुलारा भी बन गया वो.....!!!

दोनों की दोस्ती रंग ले आई....
नए शब्दो की रट लगाई....!!!
अब कहाँ बिलखता छोटू....
मिट्ठू के साथ बहकता छोटू....!!!

दिन-गुजरे वक़्त बदले.....
छोटू मियां चोट से उबरे....
स्कूल-दोस्तों की चक्कर मे....
बस बेचारे मिट्ठू रगड़े....!!

रट-रट के नाम पुकारे.....
छोटू उस्ताद पास ना आए....
मिट्ठू ने भी गाना छोड़ा....
उठना बैठना खाना छोड़ा....!!!

रात की कुछ खटक हुई....
पिंजरे मे कुछ चहक हुई....
खून सना पिजड़ा था अकड़ा....
बिल्ली मौसी ने उसे था जकड़ा....

सुबह उठा और देखा क्या....
पिजड़े है पर तोता क्या....!!!

©खामोशियाँ 

4 टिप्‍पणियां:

  1. राहुल ...!

    जिस उत्साह के साथ " थीम .. ! " पर आपने लिखा वो आपके सृजनधर्मिता को खुब दर्शाती है!

    और अत्यंत खुशी की बात है कि आपने कहानी के मर्म को ही नही , अपितु पुरी कथा को बहुत ही खुबसूरती से पंक्तीयों के माध्यम से कह दिया !

    बेहद मर्मस्पर्शी लेखन!

    आभार ...!

    सप्रेम

    अनुराग

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-10-2013) "दोस्ती" (चर्चा मंचःअंक-1394) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. धन्यवाद सभी का ..... अनुराग भैया आपकी तारीफ़ें बड़ी असर करती/////
    नीलिमा मैम....शुक्रिया....ब्लॉग पर पधारने लिए///
    डॉ साहब आपके तो हम फ़ैन है....प्रकाशित करने लिए धन्यवाद.....

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