बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

साकी



चाहे पागल कह दें पर जाम दे दे,
साकी इतना ना रुला इनाम दे दे..!!

सपने बेगैरत हुए है आज कल के,
जिंदगी फिजूल रही मुकाम दे दे..!!

नींद नहीं दे सकता मर्जी है तेरी,
बस कश्ती को मेरी अंजाम दे दे...!!

वास्ता क्या है मेरा-तेरा पता नहीं,
मुझे ज़िन्दगी की पहचान दे दे..!!


©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल 
(०६-०८-२०१५)(डायरी के पन्नो से)

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को शनिवार, ०८ अगस्त, २०१५ की बुलेटिन - "पश्चाताप के आंसू" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।

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