चाहे पागल कह दें पर जाम दे दे,
साकी इतना ना रुला इनाम दे दे..!!
सपने बेगैरत हुए है आज कल के,
जिंदगी फिजूल रही मुकाम दे दे..!!
नींद नहीं दे सकता मर्जी है तेरी,
बस कश्ती को मेरी अंजाम दे दे...!!
वास्ता क्या है मेरा-तेरा पता नहीं,
मुझे ज़िन्दगी की पहचान दे दे..!!
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(०६-०८-२०१५)(डायरी के पन्नो से)
आपकी इस पोस्ट को शनिवार, ०८ अगस्त, २०१५ की बुलेटिन - "पश्चाताप के आंसू" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
जवाब देंहटाएंbahut badhiya ...
जवाब देंहटाएंati uttam.....badhiya
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