पंद्रह अगस्त समारोह के ठीक पहले दो स्कूल हाउस कैप्टन दूर से निगहबानी कर रहे। तम्बू पर कान चिपके सारे फुसुर-फुसुर सुन रहे।
"दो मिनट तक तो आजाद रहो तुम। " शिखा ने प्यार से कहा
"कल पंद्रह अगस्त हैं ना?" रोहन ने जवाब में सवाल किया
"तो आज क्या गुलाम हो तुम??" शिखा ने पूछा
"ये तुमसे बेहतर और कौन जानेगा।" रोहन ने कहा
"हद करते हो। तुम्हें फ़ीता तक तो बांधने का टाइम नहीं, लाओ ना मैं बांध देती हूँ।" शिखा ने कहा
दूर खड़ी पूरी स्कूल की आँखें दो घरों में एक घर बना रहे। वो तो केवल बालों की क्लिप में लगे तिरंगे को ही जाने कबका सैल्यूट मारकर परेड पूरा कर लिया।
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (१५-अगस्त-२०१५)
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