बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 5 अगस्त 2015

थोडा सम्हलकर चल


दिल अभी टूटा है 
थोडा सम्हलकर चल,
देख लिया बहुत कदम बदलकर चल..!!

साँझ है अभी शब भी आएगी जल्द ही,
किस्मत से कभी आगे निकलकर चल..!!

थोडा सा ही बचा है फासला तेरा-मेरा,
कभी गलियों का माज़रा देखकर चल..!!

पता चल जाएगा तुझे दर्द-ए-इश्क मेरा,
ज़रा अपने जूते मुझसे बदलकर चल...!!


©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल 
(०५-०८-२०१५)(डायरी के पन्नो से)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें