बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

इश्क़ में हदें



इश्क़ में हदें जब से बनने लगी,
दिलों में सरहदें भी बनने लगी।

घायल हुए कई कबूतरों के जोड़े,
यादों की खपड़ैल भी टूटने लगी।

सँजोये रखा था बहुत कुछ हमने,
ख्वाबों की चाभी भी रूठने लगी।

कुछ माँझे सुलझते नहीं हैं कभी,
डोर पतंगों की भी छूटने लगी।

मिश्रा राहुल | खामोशियाँ
(26-जुलाई-2015)(डायरी के पन्नो से)

2 टिप्‍पणियां:

  1. "कुछ माँझे सुलझते नहीं है कभी..."
    So true!

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    उत्तर
    1. हाँ अनुपमा जी कुछ माँझे नहीं सुलझते।
      धन्यवाद ब्लॉग पर पधारने के लिए।

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