बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 22 सितंबर 2013

अजनबी मुखौटे


ट्रेन के पावदान भी गिनते
हर रोज़ सबके निशान...!!

चलते मचलते
हवाओं पर पेंग मारते...
हर हचको पर
अलार्म टाँगे
लोगो को जगाया करते...!!

कुछ धूधली तस्वीरों बाद
अक्सर दोहरा जाते चेहरे...!!!
मुखौटे भी गिने चुने
खुदा के पास भी...
तभी पहना देता
उन्हे एक अरसे बाद...!!

खोज ज़रा...
किसी अजनबी शहर मे
अजनबी बना के...
मिलेगा किसी
टूटी टीन की छप्पर तले
चाय की मीठे चुसकियाँ मारते...!!

पहचान ना पाएगा तू....
खुद के अक्स को भी....!!

©खामोशियाँ-२०१३

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