बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 17 अगस्त 2013

मज़ार की बयार


छत के अतरे
दुबकी बैठी पुरानी मज़ार....
उड़ा के
लिए जाती कौतूहल हज़ार....!!!

सैलाब की खामोशी
चुन्नट मे लपेटे....
उड़ती इर्द-गिर्द मीठी बयार....!!!

उम्मीद की ओढनी
कब तक थामेगी....
कभी तो
बाहर आएगी दबी चीखती पुकार....!!!

©खामोशियाँ-२०१३

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