बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 24 नवंबर 2012

एहसास...!!!

ठण्ड लग गयी और शायद हाँ छू गयी एक एहसास...किसी कि भीगी जुल्फों की...हाँ गुनाहगार हैं मेरी वो सब सीतलहरें...जिन्होंने टाफी खा के मुह लभेड रखा हैं उनके अक्स से...!!!
धूप उतरती कितने सैन्यारो को लांघते...
अजीब सी उलझन थामे रखती जेहन में...!!!

हलकी मुलायम गुदगुदाती हुई देख...
कभी गिर पड़ती एक जगमगाते कांचे पर...!!!

लोग भूल जाते उन्हें शायद..
तभी ग़लतफहमी में कांचे उठा लेते...!!!

अब्र तो खड़े कि कब बरस पड़े पर..
उससे पहले ओस समां धुधला कर देती...!!!

जाने कैसा लगता जहाँ क्या बताऊ...
कोई पतली शीशी में पानी भर रहा मानो...!!!

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