बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 26 अप्रैल 2015

उम्मीदों का भूकंप



हर शब
कई ख्वाब टूटते।
हर पल
यादों की इमारत ढहती।

उम्र भर की कमाई,
एक ही
पल में बिखर जाती।

दबे रहते
मलबे तले
लाखों एहसास।

तड़प कर
दम तोड़ते,
जाने कितनी
फरियादें।

ऐसे तो
हर रोज ही
आता है
उम्मीदों का भूकंप।

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