भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
गुरुवार, 30 अप्रैल 2015
बर्थड़े स्पेशल
खुशियों के बहाने हम खोज लाएंगे,
हम आपको हसाने हर रोज आएंगे।
कभी दराजों के पुर्जों में खोज लेना,
तस्वीरों से लिपटे हर रोज आएंगे।
यादों के इलाकों में गुल हैं जितने,
उतनी ही कलियाँ हर रोज लाएंगे।
ख्वाइशें लिख रखी हैं हमने कहीं,
लेकर सारे ख़्वाब हर रोज आएंगे।
- बर्थड़े स्पेशल - मिश्रा राहुल
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Happy Birthday Gunjan
All the Blessings and Happiness in your ways :)
रविवार, 26 अप्रैल 2015
उम्मीदों का भूकंप
हर शब
कई ख्वाब टूटते।
हर पल
यादों की इमारत ढहती।
उम्र भर की कमाई,
एक ही
पल में बिखर जाती।
दबे रहते
मलबे तले
लाखों एहसास।
तड़प कर
दम तोड़ते,
जाने कितनी
फरियादें।
ऐसे तो
हर रोज ही
आता है
उम्मीदों का भूकंप।
मंगलवार, 14 अप्रैल 2015
रहमत के फतवे
रहमत के फतवे लेकर दिखाया ना करो,
प्यार किए तो किए पर जताया ना करो।
मुडेरों पर बैठा करते ये काठ के कबूतर,
चिट्ठियों के लिए उन्हे भगाया ना करो।
इम्तेहाँ लेती रहेगी हर परग ये जिंदगी,
आँखें नम करो पर इसे बताया ना करो।
गुनाह तो बहुत हुए है तुमसे भी सोचो,
हर खता की दरख्वास लगाया ना करो।
दास्ताँ हैं तो उसे लिखकर रखना कहीं,
कागज चुनकर हर रोज छिपया ना करो।
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रहमत के फतवे (१४ - अप्रैल -२०१५)
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
बुधवार, 8 अप्रैल 2015
ख्वाबों का घोसला
अकसर
दिल के
मुंड़ेर पर बैठती,
एक प्यारी सी गौंरैया।
चुन-चुनकर
चोंच से लम्हे,
बनाया करती।
छोटे-छोटे
ख्वाबों का घोसला।
खुशियों
को इर्द-गिर्द
बसाए निहारती।
पर अचानक
आ गया
गमों का तूफान।
बस
बिखर गया
उम्मीदों से सजाया
ख्वाहिशों का घोसला।
दिल
की गौरैया भी
गिर पड़ी
सूखी सतह पर।
तड़प रही
उसकी
आँखों के आगे।
उड़कर
जा रहे
यादों के फटे पुर्जे।
सुबह
सारे तिनके
इकट्ठा थे।
हवाओं ने
इतना कर दिया।
गौरैया
खिल पड़ी,
देखते ही देखते।
फिर बन गया
ख्वाबों का घोसला।
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ख्वाबों का घोसला
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
जिद्दी-ज़िंदगी
बातें सारी आज भी उतनी ही सच्ची हैं,'
अक्ल उसकी अब भी वैसी ही कच्ची है।
ढूंढ कर लाती सारे मेले से अपनी मांगे,
ज़िंदगी जिद्दी सी एक छोटी बच्ची है।
खुशी में झूम-झूमकर सब को बताती,
गमों तालाब में गोते लगाती मच्छी है।
कभी-कभी अनर्गल दिल दुखा ही देती,
यकीन मानो ये दिल की बड़ी अच्छी हैं।
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" जिद्दी-ज़िंदगी " | मिश्रा राहुल
©खामोशियाँ-२०१५ | ८-अप्रैल-२०१५
गुरुवार, 2 अप्रैल 2015
यादों की गट्ठर
रोक लें तो ये कदम रुक भी जाएंगे,
पर उनके जैसा हम भी कहाँ पाएंगे।
सोच के जैसे दिल घबरा सा जाता,
यादों की गट्ठर लिए कहाँ जाएंगे।
जिंदगी नें ऐसे अपना बना लिया,
हंसी छोड़कर गमों में कहाँ जाएंगे।
रौनक तो अभी आई है चेहरे पर,
उन्हे खोकर हम भी कहाँ जाएंगे।
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©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (०३-०३-२०१५)
प्रेम की आधुनिकता
प्रेम का अस्तित्व अगर समय रहते पता चल जाए तो बात ही क्या हो। अगर वक़्त करीब रखता तो कद्र ना होती और दूरी बढ़ जाती तो वापस पाना उतना आसान नहीं होता।
खैर प्रेम जरूरी है। लगाव जरूरी है। चाँद-सितारे तोड़ना एक मायना है की हम किस कदर तक आपके एक आवाज़ पर कुछ भी ला सकते।
प्यार ऐसा बंधन है जो अचानक से होता है। अचानक से कोई इतने करीब होता की बिना उसके जीना दुश्वार हो जाता। एक मिनट के लिए भी ओझल ना होने का मन होता।
फिर भी दुनिया चका-चौंध में आजकल रिश्तों की टूटने का खबर सुनता हूँ तो बड़ा दुख होता है। दर्द होता है की कहीं लोगों का प्यार-मोहोब्बत से विश्वास ना उठ जाए। कहीं कोई किसी पर एतबार करना ना छोड़ दे। कुछ बातें ईश्वरी है वो कायम रखना जरूरी।
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प्रेम की आधुनिकता | मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
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