घड़ी में तीन बजे नहीं की रास्ता निहारना शुरू। बैंक रोड पर बारिश कुछ ज्यादा ही हो रही थी। लड़के की छप्पर भी टप-टप-टप। देखने के चक्कर में उसने कई ग्राहकों पर ध्यान तक नहीं दिया। उसने बस रुवांसा मुंह बनाया ही था कि ठेले पर लगे बताशों के ढ़ेर के पीछे से आकर एक बाला नें हाथ बढ़ाया।
क्लचर खोलकर उसने बालों को ऐसा झटका मारा जैसे मानो रजनीगंधा की खुशबू पूरे पांचों फ्लेवर को एक ही बना दिया।
पहले पुदीना फिर सौंफ फिर हींग। पहाड़े की तरह याद कर रखा है। हर दो पुदीने के बताशों के बीच एक मीठा मज़ा। काफी पुरानी यारी सी लगती।
प्यार तो प्यार है एक अधिक बताशे या दों के बीच एक मीठा खिलाने से भी हो जाता।
- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
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