बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

लप्रेक ५



घड़ी में तीन बजे नहीं की रास्ता निहारना शुरू। बैंक रोड पर बारिश कुछ ज्यादा ही हो रही थी। लड़के की छप्पर भी टप-टप-टप। देखने के चक्कर में उसने कई ग्राहकों पर ध्यान तक नहीं दिया। उसने बस रुवांसा मुंह बनाया ही था कि ठेले पर लगे बताशों के ढ़ेर के पीछे से आकर एक बाला नें हाथ बढ़ाया।

क्लचर खोलकर उसने बालों को ऐसा झटका मारा जैसे मानो रजनीगंधा की खुशबू पूरे पांचों फ्लेवर को एक ही बना दिया।

पहले पुदीना फिर सौंफ फिर हींग। पहाड़े की तरह याद कर रखा है। हर दो पुदीने के बताशों के बीच एक मीठा मज़ा। काफी पुरानी यारी सी लगती।

प्यार तो प्यार है एक अधिक बताशे या दों के बीच एक मीठा खिलाने से भी हो जाता।

- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)

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