बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

सोमवार, 13 जुलाई 2015

इतने खास हो मेरे



तुम दूर कहाँ हमसे इतने पास हो मेरे,
रोज ख्वाबों मे आते इतने खास हो मेरे।

रात होती काली दिल डर सा जाता है,
उसमे जुगनू सजाते इतने खास हो मेरे।

अकेली तितली सी उड़ती जिंदगानी में,
तुम विश्वास जगाते इतने खास हो मेरे।

मेरे इर्द-गिर्द बस महकती तबस्सुम तेरी,
ऐसा एहसास दिलाते इतने खास हो मेरे।

©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(१३-जुलाई-२०१५)(डायरी के पन्नों से)


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