यादों की छांव के गुल खिलते रहेंगे,
चाँद बालकनी पे रोज़ मिलते रहेंगे।
वक़्त चलता रहता है रुकता कहाँ,
ख्वाइशों के बाल रोज़ उड़ते रहेंगे।
ज़िंदगी मुट्ठी भर धूप लिए घूमती,
मोम के बाजू हर रोज़ जलते रहेंगे।
चेहरे बदल कर आजमाया करती,
साँचे ख्वाबों के रोज़ खुलते रहेंगे।
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (२५-जनवरी-२०१५)
चाँद बालकनी पे रोज़ मिलते रहेंगे।
वक़्त चलता रहता है रुकता कहाँ,
ख्वाइशों के बाल रोज़ उड़ते रहेंगे।
ज़िंदगी मुट्ठी भर धूप लिए घूमती,
मोम के बाजू हर रोज़ जलते रहेंगे।
चेहरे बदल कर आजमाया करती,
साँचे ख्वाबों के रोज़ खुलते रहेंगे।
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (२५-जनवरी-२०१५)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें