बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 17 जनवरी 2015

ज़िंदगी की नाव



चलें आज
ज़िंदगी के भंवर में
यादों की नाव उतारे।

उदास
लम्हों को
बीच से फ़ोल्ड* करे।

टूटे
ख्वाबों को खुद
अटैच* कर पास लाए।

अपने
वादों को
ऊपर खुद चढ़ा आए।

बस
वादों को
लम्हों में
अल्टी-पलटी करे।

ज़रा सा
खोल दें बाहें
तैयार खड़ी आपकी नाव।

चलें आज
ज़िंदगी के भंवर में
यादों की नाव उतारे।
___________________
ज़िंदगी की नाव | मिश्रा राहुल
©खामोशियाँ-२०१५ | १७-जनवरी-२०१५

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