भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
रविवार, 25 जनवरी 2015
फासला
कभी तुझमें तो कभी मुझमें पलता है,
ये फासला भी तो कुछ ऐसा चलता हैं।
दूरियाँ वजह होती नहीं दूर होने की,
एहसास मन का कुछ ऐसा बोलता है।
ओढ़ता हूँ तो पाता बहुत करीब मेरे,
दिल के पास कोना ऐसा मिलता है।
बस एक तू ही तो जो रूबरू है मुझसे,
वरना हमसे जमाना ऐसा जलता है।
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (२५-जनवरी-२०१५)
बालकनी पे चाँद
यादों की छांव के गुल खिलते रहेंगे,
चाँद बालकनी पे रोज़ मिलते रहेंगे।
वक़्त चलता रहता है रुकता कहाँ,
ख्वाइशों के बाल रोज़ उड़ते रहेंगे।
ज़िंदगी मुट्ठी भर धूप लिए घूमती,
मोम के बाजू हर रोज़ जलते रहेंगे।
चेहरे बदल कर आजमाया करती,
साँचे ख्वाबों के रोज़ खुलते रहेंगे।
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (२५-जनवरी-२०१५)
चाँद बालकनी पे रोज़ मिलते रहेंगे।
वक़्त चलता रहता है रुकता कहाँ,
ख्वाइशों के बाल रोज़ उड़ते रहेंगे।
ज़िंदगी मुट्ठी भर धूप लिए घूमती,
मोम के बाजू हर रोज़ जलते रहेंगे।
चेहरे बदल कर आजमाया करती,
साँचे ख्वाबों के रोज़ खुलते रहेंगे।
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (२५-जनवरी-२०१५)
शनिवार, 17 जनवरी 2015
ज़िंदगी की नाव
चलें आज
ज़िंदगी के भंवर में
यादों की नाव उतारे।
उदास
लम्हों को
बीच से फ़ोल्ड* करे।
टूटे
ख्वाबों को खुद
अटैच* कर पास लाए।
अपने
वादों को
ऊपर खुद चढ़ा आए।
बस
वादों को
लम्हों में
अल्टी-पलटी करे।
ज़रा सा
खोल दें बाहें
तैयार खड़ी आपकी नाव।
चलें आज
ज़िंदगी के भंवर में
यादों की नाव उतारे।
___________________
ज़िंदगी की नाव | मिश्रा राहुल
©खामोशियाँ-२०१५ | १७-जनवरी-२०१५
शुक्रवार, 9 जनवरी 2015
आ चले - A Maestro Productions Presents
सुने तो ज़रा:
आ चले - A Maestro Productions Presents
Album : Khamoshiyan | Lyrics : Misra Raahul |
Singer & Composer : Vishaal Mishra
पुरानी नज़्म
कोई पुरानी
नज़्म उठा लूँ...
या नई
गज़ल लिख दूँ...!!
फिर
काले गुब्बारे
पे नक्काशी करूँ,
या नए
सैन्यारे खरीद लाऊं...!!
फिर
उम्मीदों की
एक धूप खोजूँ...
या नए
नज़ारे ढूंढ ले आऊँ...!!
फिर
पॉकेट से
कोई जुगनू निकालूँ,
या नए
सितारे खोज ले आऊँ...!!
बता ज़िंदगी
कोई पुरानी
नज़्म उठा लूँ...
या नई
गज़ल लिख दूँ...!!
©खामोशियाँ-२०१५ // मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (८-जनवरी-२०१५)
नज़्म उठा लूँ...
या नई
गज़ल लिख दूँ...!!
फिर
काले गुब्बारे
पे नक्काशी करूँ,
या नए
सैन्यारे खरीद लाऊं...!!
फिर
उम्मीदों की
एक धूप खोजूँ...
या नए
नज़ारे ढूंढ ले आऊँ...!!
फिर
पॉकेट से
कोई जुगनू निकालूँ,
या नए
सितारे खोज ले आऊँ...!!
बता ज़िंदगी
कोई पुरानी
नज़्म उठा लूँ...
या नई
गज़ल लिख दूँ...!!
©खामोशियाँ-२०१५ // मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (८-जनवरी-२०१५)
बुधवार, 7 जनवरी 2015
एखट-दुक्खट
कभी
आ ज़िंदगी
एखट-दुक्खट खेलें।
खांचे खींचे,
पहला पूरा,
दूसरा आधे
पर कटा हुआ।
आता है ना??
तुझे पूरा
खांचा खींचना।
गोटी फेंकें
बढ़ाएँ चाल।
चल जीतें
घर बनाए ।
अपने
घर में
आराम से रुकें
सुकून पाए।
फिर
जल्दी निकल दूसरे
के पाले फांग जाए।
कभी
आ ज़िंदगी फिर से
एखट-दुक्खट खेलें।
©खामोशियाँ-२०१४॥ मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (०४-जनवरी-२०१५)
आ ज़िंदगी
एखट-दुक्खट खेलें।
खांचे खींचे,
पहला पूरा,
दूसरा आधे
पर कटा हुआ।
आता है ना??
तुझे पूरा
खांचा खींचना।
गोटी फेंकें
बढ़ाएँ चाल।
चल जीतें
घर बनाए ।
अपने
घर में
आराम से रुकें
सुकून पाए।
फिर
जल्दी निकल दूसरे
के पाले फांग जाए।
कभी
आ ज़िंदगी फिर से
एखट-दुक्खट खेलें।
©खामोशियाँ-२०१४॥ मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (०४-जनवरी-२०१५)
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