बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 5 सितंबर 2018

ख्वाहिशें

कुछ ख्वाहिशें हम भी पालना चाहते हैं,
थोड़ा ही सही पर रोज मिलना चाहते है।

मरने का कोई खास शौक नहीं है हमें,
जिंदा रहकर बस साथ चलना चाहते हैं।

रोज आता चाँद पुरानी बालकनी पर,
ऐसी ही कुछ आदतें डालना चाहते हैं।

यादों के कोरों में बूंद जैसा रिसकर,
अकेली नुक्कड़ पर घुलना चाहते है।

कभी मिलो ज़िंदगी फुरसत में मुझसे,
तेरे साथ एक सुबह खिलना चाहते हैं।

©खामोशियाँ-2018 | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(05-सितंबर-2018)

2 टिप्‍पणियां: