बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 27 मार्च 2016

ख्वाब


रात तकिये नीचे सेलफोन में उँगलियाँ स्क्रॉल करते कब सो गया पता नहीं चला। आजकल बहुत नीचे चले गए हैं कुछ फोटोग्राफ्स, जो कभी मोबाइल की पहली ग्रिड में अपना सीना तानकर खड़े रहते थे।


सपने सच बोलते वहाँ ज़ोर कहाँ चलता किसी का। कल आई थी चुप-चाप थी गुमसुम थी उलझी थी बिखरी थी लटें। ज़ुल्फों को उँगलियों से कंघा भी किया उसने देखकर मुस्कुराया। बोला नहीं सुना है सपनों में बोला नहीं करते शोर से टूट जाता बहुत कुछ। कुछ पल के लिए ठहर गया था समा। 


बस समझो मज़ा आ गया था।

- मिश्रा राहुल | खामोशियाँ-2016
(डायरी के पन्नो से) (24-02-2016)

1 टिप्पणी:

  1. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 29/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक 256 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

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