पुरानी लिबास पहनकर निकल गए,
हम गलियों से मिलकर निकल गए।
आदाब करती है बातें खतों में उलझी,
हम लिफाफों को मनाकर निकल गए।
दूर जाऊँगा तो याद आएगी ना तेरी,
तस्वीर झोले में छुपाकर निकल गए।
ये फिजाएं आज तक गुलाम है तेरी,
उम्मीद-ए-चिराग लेकर निकल गए।
जीने की तस्सवुर नहीं होती बिन तेरे,
गुजारिश अपनी बताकर निकल गए।
गज़ल | खामोशियाँ | २६-जून-२०१५
मिश्रा राहुल | ब्लोगिस्ट एवं लेखक
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