बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 1 मई 2013

अंश्क की चुपड़ी रोटी


सूरज हर रोज़ चला आता...
घुटने के बल
कंधा टेकने...!!

बाजु की बुशट मोड़े...
पसीने की गोलियाँ
लट मे उलझाए...!!!

इतना क्यूँ जल रहा सबसे...
अजनबियों के शहर से
वास्ता क्या हैं तेरा...!!

एक दिन की ज़िंदगी...
अगले दिन की रात...!!
कौन याद रखेगा
तेरी तपिश...!!

लोग यहाँ
तेरी मजबूरी पर उपले रख...
रोटी सेंकते हैं...!!

कल ही
खाया नमकीन रोटी
हाँ तेरा अंश्क की चुपड़ी हुई...!!

©खामोशियाँ

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