बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

सामना

जब सामना होगा तो बात भी हो जाएगी,
पुरानी अटकी हुई वो रात भी हो जाएगी।

जवाब खोजेंगे दो लफ्ज़ अपने तरीके से,
बदले चेहरों से मुलाक़ात भी हो जाएगी।

कब तक रखोगे रद्दी अपने नज़्मों की
जब चिंगारी बढ़ेगी तो राख भी हो जाएगी।

कितनी झुर्रियां लद चुकी हैं पालते पालते,
आईने खुद बोलेंगे तो हिसाब भी हो जाएगी।

अगले चौराहे से बदलेंगे कारवां-ए-ज़िंदगी,
चाँद लेकर चलेंगे तो आदाब भी हो जाएगी।

©खामोशियाँ | 21- अप्रैल-2017
(मिश्रा राहुल) (डायरी के पन्नो से)

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