फुर्सत में ठहरो तो कुछ हम भी कहे,
आँखों में उतरो तो कुछ हम भी कहे।
बेतरतीब उलझन फैली हैं इर्द-गिर्द,
आ सुलझें खुद सुलझानें को भी कहे।
फ़लक नें रोक रखे बहुत टूटे सितारे,
ऊपर झांकों तो गिराने को भी कहे।
शाम की जुल्फें कान के पार लगाए,
वादे किए है जो निभाने को भी कहे।
अच्छा है जो थम गया मर्ज तेरा-मेरा,
सुने ज़िंदगी की सुनाने को भी कहे।
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(२३-नवंबर-२०१५)
सुन्दर शब्द चयन |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना । मेरी ब्लॉग पर आपका स्वागत है |
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