पुराने
कैलेंडर सी
खुद को
दोहराते जाती
है जिंदगी भी।
कुछ
तारीखों पे
लाल गोले,
यादों पर
बिंदी रखते।
कुछ गुम
हुए त्योहार
अपनी अलग
कहानियां सुनाते।
तारीखों
के इर्द गिर्द
सपने बुने जाते।
उन्ही सपनो
में पर लगाकर,
दूसरे कैलेंडर
तक पहुँच जाते।
खोती
कहां है
तारीखें।
चली आती
हर बार उसी
लिबास में,
खुद को
दोहराने
और यादों को
फिर से गाढ़ा करने।
पुराने
कैलेंडर सी
खुद को
दोहराते जाती
है जिंदगी भी।
- मिश्रा राहुल
(27-जून-2017)