बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

ख्वाबों का घोसला



अकसर
दिल के
मुंड़ेर पर बैठती,
एक प्यारी सी गौंरैया।

चुन-चुनकर
चोंच से लम्हे,
बनाया करती।
छोटे-छोटे
ख्वाबों का घोसला।

खुशियों
को इर्द-गिर्द
बसाए निहारती।
पर अचानक
आ गया
गमों का तूफान।

बस
बिखर गया
उम्मीदों से सजाया
ख्वाहिशों का घोसला।

दिल
की गौरैया भी
गिर पड़ी
सूखी सतह पर।

तड़प रही
उसकी
आँखों के आगे।
उड़कर
जा रहे
यादों के फटे पुर्जे।

सुबह
सारे तिनके
इकट्ठा थे।
हवाओं ने
इतना कर दिया।

गौरैया
खिल पड़ी,
देखते ही देखते।
फिर बन गया
ख्वाबों का घोसला।
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ख्वाबों का घोसला
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल

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